April 27, 2025

बच्ची की अस्वाभाविक मौत, मां ने मांगा इन्साफ

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HnExpress 4 नवम्बर, सीताराम अग्रवाल, कोलकाता : एक 7 वर्षीय बच्ची की अस्वाभाविक मृत्यु का मामला सामने आया है तथा उसकी मां ने आज स्थानीय प्रेस क्लब में पत्रकारों को इस बारे में अपनी व्यथा सुनाते हुए प्रशासन से भलीभाँति जांच कर मौत का वास्तविक कारण उद्घाटित करने की मांग की है। मां को संदेह है कि बच्ची की हत्या की गयी है। घटना गत 13 नवम्बर की है, जब जयिता प्रामाणिक नामक 7 वर्षीया बालिका का शव नन्दनपुर पुंटीखाली प्राइमरी स्कूल के पास एक तालाब में पाया गया।

यह स्थान हुगली जिले के खानाकुल थानान्तर्गत नन्दनपुर गांव के अन्तर्गत है। बच्ची अपने जुड़वा भाई के साथ इसी स्कूल में पढ़ती है तथा उस दिन भी वह स्कूल गयी थी। और बताया जाता है कि उसने मिड डे मील (स्कूल में मिलनेवाला दोपहर का भोजन) भी खाया था। स्कूल के पास ही उसका घर है, जब उसका भाई घर में अकेला आया तो मां ने पूछताछ करके खोजबीन की। थोड़ी देर बाद ही बच्ची का शव स्कूल के पीछे तालाब में पाया गया।

परिवार का आरोप है कि पुलिस ने इस बारे में कोई कार्रवाई नहीं की। बाद में उच्चाधिकारियों के हस्तक्षेप से 5 दिनों के बाद 18 नवम्बर को अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ़ हत्या का मामला दर्ज किया गया। मां मालती प्रामाणिक ने पत्रकारों के समक्ष संदेह व्यक्त किया कि उक्त स्कूल के हेडमास्टर तथा मिड डे मील तैयार करनेवाली महिला के बीच किसी अनैतिक कार्य को देख लेने के कारण ही बालिका की हत्या की गयी है ।

अत: हम मांग करते हैं कि सत्य उद्घाटित कर दोषियों को अविलंब सजा दी जाय। पता चला है कि इस घटना से गांव वालों का गुस्सा फुट पड़ा है और उन्होंने स्कूल में ताला जड़ दिया है। पत्रकार सम्मेलन में बच्ची के परिवार के कई सदस्य उपस्थित थे। सत्य चाहे जो हो, पर कुछ सवाल तो खड़े होते ही हैं। हम ” बेटी पढ़ाई बेटी बचाओ ” आंदोलन चलाते हैं, पर एक मां जब सबेरे खुशी-खुशी अपनी बेटी को पढ़ने भेजती है और कुछ ही समय बाद जब उसकी लाश देखती है, तो उस पर क्या बीती होगी, बयां करना मुश्किल है।

यही नहीं दूसरे दिन 14 नवम्बर को जब पूरा देश ” बाल दिवस ” मना रहा था, एक मां अपनी बच्ची की अस्वाभाविक मृत्यु की जांच के लिए गुहार लगा रही धी, पर थाने के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। क्या कन्याश्री योजना के जरिये पूरे विश्व में धाक जमानेवाले बंगाल में इस तरह का अमानवीय कृत्य लज्जाजनक नहीं है? अब देखना यह भी है कि बाल संरक्षण और मानवाधिकारों के लिए आवाज बुलंद करने वाले सामाजिक संगठन इस बारे में क्या कदम उठाते हैं?

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