प्राकृतिक रंगों से खेलें होली

0


HnExpress सीताराम अग्रवाल : प्राकृतिक रंगों से होली खेले बिना जो लोग ग्रीष्म ऋतु बिताते हैं, उन्हें गर्मीजन्य उत्तेजना, चिड़चिड़ापन, खिन्नता, मानसिक अवसाद (डिप्रेशन), तनाव, अनिद्रा इत्यादि तकलीफों का सामना करना पड़ता है। आइये आपको बताते है कि प्राकृतिक रंग कैसे बनायें ?

1) केसरिया रंग : पलाश के फूलों को रात को पानी में भिगो दें। सुबह इस केसरिया रंग को ऐसे ही प्रयोग में लायें या उबालकर, उसे ठंडा करके होली का आनंद उठायें।
2) लाल रंग : पान पर लगाया जानेवाला एक चुटकी चूना और दो चम्मच हल्दी को आधा प्याला पानी में मिला लें। कम से कम 10 लीटर पानी में घोलने के बाद ही उपयोग करें।

3) सूखा पीला रंग : 4 चम्मच बेसन में 2 चम्मच हल्दी चूर्ण मिलायें । सुगंधयुक्त कस्तूरी, हल्दी का भी उपयोग किया जा सकता है और बेसन की जगह गेहूँ का आटा, चावल का आटा, आरारोट का चूर्ण, मुलतानी मिट्टी आदि उपयोग में ले सकते हैं।
4) गीला पीला रंग :
A) एक चम्मच हल्दी दो लीटर पानी में उबालें या मिठाइयों में पड़नेवाले रंग जो खाने के काम में आते हैं, उसका भी उपयोग कर सकते हैं।
B) अमलतास या गेंदे के फूलों को रात को पानी में भिगोकर रखें, सुबह उबालें।



5) पलाश के फूलों का रंग बनायें: पलाश के फूलों से बने रंगों से होली खेलने से शरीर में गर्मी सहन करने की क्षमता बढ़ती है, मानसिक संतुलन बना रहता है।
रासायनिक रंगों से होने वाली हानि…
1. काले रंगमें लेड ऑक्साइड
पड़ता है, जो गुर्दे की बीमारी, दिमाग की कमजोरी लाता है।
2. हरे रंग में कॉपर सल्फेट होता है, जो आँखों में जलन, सूजन, अस्थायी अंधत्व
लाता है।
3. सिल्वर रंग में एल्यूमीनियम ब्रोमाइड होता है जो कैंसर करता है।
4. नीले रंग में प्रूशियन ब्ल (कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस) से भयंकर त्वचारोग
होता है।

5. लाल रंग जिसमें मरक्युरी सल्फाइड होता है जिससे त्वचा का कैंसर होता है।
6. बैंगनी रंग में क्रोमियम आयोडाइड होता है, जिससे दमा, एलर्जी होती है।
इस प्रकार आप होली पूरे आनंद के साथ मनायें, पर सावधानी के साथ, अन्यथा होली का रंग फीका होने के साथ बहुत बड़ी मुसीबत में भी पड़ सकते हैं। अतः प्राकृतिक रंग अपना कर अपने परिवार के साथ आप समाज को भी होली का वास्तविक उल्लास में भर सकते हैं।

FacebookTwitterShare

Leave a Reply Cancel reply